मुझसे बुरा ना कोई - Mujhase bura na koi
हम हमारे जिवन में शामिल अगणित दुखों में यू खो जाते है की हमे प्रसन्नता का एक बड़ा हिस्सा हमारे अंदर निहित है यह हम नहीं जानते इसी वजह से हम सदा सुखों की खोज में अनायास भटकते रहते है जो खोज हमारे जीवन में कभी खत्म ही नही होती . अनेक संत महंतो ने हमे ये सिखाया की खुदमे खुद ही ईश्वर है बस उसको पहचानो लेकिन हम सारे ब्रम्हांड के खोज में जुट जाते है इस सुख की खोज में जोकि हमारे अंदर निहित होता है. योग दिवस पर जब मैं योग कर रहा था तब मुझे यह कविता सूझी और मैं खुद पे ध्यान लगा रहा था. की हे प्रभु मन के क्लेश मिटे मेरे तो मैं आप से समरस हो पाऊं और इन्ही क्रियाकलाप में जो शब्द रचनाका आविष्कार हुवा वह आपके समुख प्रस्तुत करता हु कृपया आपका आशीष प्रदान करे. कविता में निहित भावचत्रिका गूगल से ली गई है और उसके लिए हम गूगल के आभारी है.
मुझसे बुरा ना कोई - Manoj ingle
तुमसे मन लागा तन लागा
तुम बिन मेरा ना कोई ।
जीत जाऊ उत पाऊं तुमको
तुम प्रभु मेरे हाई ।।
मन के क्लेश हरे सब मेरे
ये अज्ञानी मन रोई ।
जन्म मृत्यु का अंतर मिटा
दूर हुई मोक्ष की खाई ।।
मन अविरत भटकता रहता
मन चंचल संज्ञान ये होई ।
तुमसे मिले मन मेरा
प्रसन्न नेत्र ये अवीरत रोई ।।
खुद लांछन लगाया सबको
खुदको अकेला पाई ।
खुदको देखा खुदमे जब
मुझसे बुरा ना कोई ।।
✍️ मनोज इंगळे
mujhase bura na koee - manoj ingle
tumase man laaga tan laaga
tum bin mera na koee .
jeet jaoo ut paoon tumako
tum prabhu mere haee ..
man ke klesh hare sab mere
ye agyaanee man roee .
janm mrtyu ka antar mita
door huee moksh kee khaee ..
man avirat bhatakata rahata
man chanchal sangyaan ye hoee .
tumase mile man mera
prasann netr ye aveerat roee ..
khud laanchhan lagaaya sabako
khudako akela paee .
khudako dekha khudame jab
mujhase bura na koee ..
✍ manoj ingle
No comments:
Post a Comment