मुझसे बुरा ना कोई - Mujhase bura na koi
मुझसे बुरा ना कोई - Mujhase bura na koi
हम हमारे जिवन में शामिल अगणित दुखों में यू खो जाते है की हमे प्रसन्नता का एक बड़ा हिस्सा हमारे अंदर निहित है यह हम नहीं जानते इसी वजह से हम सदा सुखों की खोज में अनायास भटकते रहते है जो खोज हमारे जीवन में कभी खत्म ही नही होती . अनेक संत महंतो ने हमे ये सिखाया की खुदमे खुद ही ईश्वर है बस उसको पहचानो लेकिन हम सारे ब्रम्हांड के खोज में जुट जाते है इस सुख की खोज में जोकि हमारे अंदर निहित होता है. योग दिवस पर जब मैं योग कर रहा था तब मुझे यह कविता सूझी और मैं खुद पे ध्यान लगा रहा था. की हे प्रभु मन के क्लेश मिटे मेरे तो मैं आप से समरस हो पाऊं और इन्ही क्रियाकलाप में जो शब्द रचनाका आविष्कार हुवा वह आपके समुख प्रस्तुत करता हु कृपया आपका आशीष प्रदान करे. कविता में निहित भावचत्रिका गूगल से ली गई है और उसके लिए हम गूगल के आभारी है.
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