राधा कृष्ण Radha Krishna
राधा कृष्ण इनका प्रेम जगत में लोगो के दिलो पे अमिट छाप छोड़ता है। इनके प्रेम को प्रतीत करने वाली ऐसी ही एक कहानी है। एक बार रुक्मिनिने कृष्ण से कहा के तुम्हारे पहले मेरा नही तो राधका नाम लिया जाता है ऐसा क्यू ? क्या वो इतनी सुंदर है ? क्या इसलिए तुम मेरे पहले उसका नाम लेते हो ? तब श्रीकृष्ण जीने रुक्मिणी को कहा के वो तो तुम्हे राधा को देखने बाद ही पता चलेगा।
रुक्मिणीजी राधाजीको देखने के लिए राधाजी के महल में जाति है तो उसे द्वार पर एक सुंदर स्त्री दिखती है तब उसे लगता है के यही राधा होंगी लेकिन वो कहती है, मैं एक दासी हूं राधाजी अंदर है। उसके बाद रुक्मिणी अंदर जाति है एक गोपिका कृष्ण के प्रतिमा को फूल चढ़ाती दिखती है तब रुक्मिणी को लगता है के यही राधा होगी इतनी सुंदर तब उससे पूछने पर वह उनसे कहती है। मैं तो दासी हू।
उसके बाद रुक्मिणी राधा के शयन कक्ष में पोहोची तो द्वार पर एक बेहद सुंदर और मृगनयनी आखोवली, कोमलांगी, और लंबे केश से बड़ी ही मनोहारी दिखती है। जो बेहद सुंदर थी तब उससे रुक्मिणी ने पूछा तुम राधा हो तब उस स्त्री ने मुस्कुराते हुए कहा की मैं राधा नही राधा तो अपने शयन कक्ष में निद्रा ले रही है तब रुक्मिणी अंदर जाति है तो देखती है के एक बेहद विद्रूप स्त्री जिसके सारे चेहरे पर अनेक छाले आए हुए है वो स्त्री राधा है तब रुक्मिणी जी को अपने आखोपे विश्वास होता नहीं की, यह विद्रूप स्त्री राधा है और श्री कृष्ण इस स्त्री के लिए इतने व्याकुल रहते है। तब रुखमिनिजी राधाजी से कहती है तुम राधा हो तब राधाजी कहती है हा मैं राधा हू। रुखमिनीजी पूछती है के तुम इतनी विद्रूप कैसे हुई तब राधाजी बोली की रुखमिनिजी आपने कल श्रीकृष्णजी को कल जो तप्त दूध दिया उससे उनका मुंह जल गया उनके मुंह में छाले आए और उसीकी वजह से मेरे शरीर पर ऐसे छाले आए। यह सुनकर रुक्मिणीजी के नेत्रों में आसू आए। तब राधाजी बोली हम शरीर से भले ही अलग अलग हो लेकिन हम आत्मा से एक है।
इसी कारण से श्रीकृष्णजी के नाम के पहले राधाजिका नाम लिया जाता है जिनका प्रेम शरीर से ना होकर आत्मिक स्वरूप का था ....
तुझ्या कडे बघण्याची भीती वाटते
मनात तुझी जागा अजुनी रीती वाटते
शब्द ओठांवर येतं नाही नजरा बोलतात
या तुझ्या चेहेर्याशी अविरत प्रीती वाटते....
✍️ मनोज इंगळे
तुझे से नजर मिलानेसे डर लगता है
दिल में तेरी जगह अभी रिक्त लगती है
शब्द अधरोपर आते नही लेकिन नजरे बोलती है
इस तेरे चेहरे से अविरत प्रिती लगती है
✍️मनोज इंगळे
Tuzhya kade bagnyachi bhiti vatate
Manat tuzhi jaga ajun riti vatte
Shabd othanvar yet nahi najra boltat
Ya tuzhya chehryashi avirat Priti vatte
✍️ Manoj ingle
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