किसान |Kisan


किसान |Kisan 

किसान |Kisan


बेपनाह आसो कि साँस हु में
हर जिवन को सवारे वो ऐहसास मै

भूख लगनेपर तुम्हारे पास हु मै 
एक दाने से अनंत कि प्यास हु मै

हा मै हु तुम्हारी भुख, मै हु तुम्हारा सुख
मै हु तुम्हारी राह, मै हू तुम्हारी चाह

मै हू हर जगह फिर भि में अकेला हु
सब को देने वाला अनंत चाहत का मेला हुँ

हा यह सच है की मै हू इस देशका किसान
मैं ही हू इस बढते विकास कि जान

में ही हु देणेवाला बिना कुछ किये सवाल
हर विपदा सह लेता हू किये कुछ बवाल

लेकीन आज भी मै विकास मे नही दिखता
मैने सिचा अनाज मट्टी के भाव है बिकता

हर नेता हमे करता है चुनावी झुठे वादे
चुन कर आनेपर सिर्फ रह जाती है यादे

अगर मैने सोचा कि नही बोउगा अनाज
तो सोचो कि सरकार पे क्या गिरेगी गाज

मंडरायेगे सिरपर चिल कौए और बाज
होजाएगी हर सब्जी मेहेंगी और रुलायेगा प्याज 

पर मै नही हू खुदगर्जी का घमंडी असला
और सोचता हु राजनीती नही है मेरा मसला

इसलिये हर राजनेता सें वज्रसा सवाल करता हू 
क्या सच मे राजनीती मे लोगो का जमीर नही होता ?
भुखे लोगोको देखकर तुम्हारा दिल नही रोता ?

हर बात पर राजनीती ठीक नही होती जनाब 
अगर जनता खुद पर आजाए तो देणे पडते है जवाब 

इसलिये एक विनती है खुदके जमीर को जगाओ 
अपने अंदरसे चाटुकारी को और जनता सें गरीबी भागाओ 

बस यही एक वादा मै खुद से बार बार करता हू 
गद्दार के बीचमे भी अपने वतन से प्यार करता हू 

मनोज इंगळे 

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